फिर मैं जीत जाऊँगा - by Priyadarshan Kumar
फिर मैं जीत जाऊँगा
-
अपने घर का प्यारा हूँ मैं,
माँ का दुलारा हूँ मैं,
मैं भी हूँ किसी धर्म से,
लेकिन कोई पूछे मुझसे पहचान मेरी,
तो भारतीय बतलाऊँगा,
फिर मैं जीत जाऊँगा।
नहीं आता मुझे निकालने,
इंसानों से भेदभाव का अंतर।
कुछ इंसान निकाल रहे हैं,
जात-पात में अंतर स्वदेश के अंदर।
मैं इनको भी मानवता का पाठ पढ़ाऊँगा,
फिर मैं जीत जाऊँगा।
माँ से किया था वादा,
दिवाली माह में आऊँगा।
अब तुम्ही बतलाओ माँ?
दुश्मन पड़े है पीछे,
मैं कैसे स्वदेश को खतरे में छोड़ आऊँगा?
चिंता मत ले माँ!
मैं इन दुश्मन को मार गिराऊँगा,
भारत माँ को बचाऊँगा,
फिर मैं जीत जाऊँगा।
मैं सारे दुश्मन को मार गिराया,
चोट हमें भी आई है।
मेरा पैर था फिसला,माँ
जहाँ हल्की सी खाई है।
हो सके तो मैं तिरंगा में लिपटकर आऊँगा,
मैं फिर भी अमर कहाऊँगा,
फिर मैं जीत जाऊँगा।
- प्रियदर्शन कुमार
दरभंगा, बिहार
No comments