शहीद के पिता का हाल - by Sukhpreet Singh "Sukhi"
शहीद के पिता का हाल
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समुन्दर आँखों का सुखाएँ तो कैसे,
वो घर में सब को समझाएँ तो कैसे,
बेटा आया है तिरंगे में लिपट कर घर,
आँखों से अपनी आँसू बहाएँ तो कैसे।
पत्नी को भी अपनी समझाएँ तो कैसे,
बेवा को उसकी मनाएँ तो कैसे,
घर का नहीं देश के सिपाही का पिता है,
वह कदम अब पीछे हटाएँ तो कैसे।
बहन को उसके सीने से हटाएँ तो कैसे,
रोते बच्चों को भी चुप कराएँ तो कैसे,
यूँ टूटता देख कर परिवार अपना,
टूटने से खुद को बचाएँ तो कैसे।
अब दिलासा खुद को दिलाएँ तो कैसे,
कि घर की छत पर छत बनाएँ तो कैसे,
बोझ दिल में जो दफन है उसके इतना,
वो अपने बेटे की अर्थी उठाएँ तो कैसे।
- सुखप्रीत सिंह "सुखी"
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