बेरंग तितली - by Kumar Vivek 'Manas'


बेरंग तितली

-

'तितली' ये शब्द सुनकर मन में रंग बिरंगी, इधर-उधर पंख फैलाए उड़ती हुई, नन्ही सी, छुई-मुई सी, एक कल्पना अनायास ही खुशियों का एहसास कराती है। मन भी इनकी तरह ही इधर-उधर फुदकने को करता है। ऐसे ही खूबसूरत तितलियों के परिवार में एक नयी तितली का जन्म हुआ। लेकिन, अरे! ये क्या? बिना रंग की तितली। पूरा तितली समाज उस परिवार के प्रति सहानुभूति जता रहा था। माता-पिता चिंताग्रस्त थे। माता तितली रोते-रोते अपनी किस्मत को और अपनी बच्ची के भाग्य को लेकर बस रोये जा रही थी। हर जगह तरह-तरह की बातें हो रही थीं। कुछ इसे देवता का प्रकोप मानकर दूसरे परिवारों को भड़काने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोशिश नाकामयाब रही और ज़िंदगी आगे बढ़ चली। माता-पिता तितली ने ये प्रण किया कि वो अपनी बेटी को किसी भी तरह से एक मजबूत इच्छाशक्ति की तितली बनाने में कोई कसर नहीं छोंड़ेंगे।


धीरे-धीरे समय बीता, तितली बड़ी हुई, बाकी सभी सहभगिनियाँ उसको बेरंग तितली होने का ताना देती, कोई उससे सीधे मुँह बात नहीं करता था। वो इन तानों को सुनकर जब मायूस होती तो उसके माता-पिता उसका हौसला बनकर उसके साथ खड़े होते और उसे समझाते कि रंग-रूप से बढ़कर आपका व्यक्तित्व होता है। अपने आप को इतना ऊँचा ले जाओ कि आपके हौसले से बाकी सब प्रेरणा लें। उस ‘बेरंग तितली’ में हौसलों की उड़ान उसको एक मजबूत इच्छाशक्ति प्रदान करती। अब वो उन सबके तानों को सुनकर सिर्फ मुस्कुराती थी।


अचानक एक दिन, तितली समाज पर एक संकट खड़ा हुआ, संकट था मृत्यु का। रोज, तितली समाज से किसी ना किसी के प्राणों की आहुति होने लगी। पूरा तितली समाज हतप्रभ था, ना मौतों की वजह पता थी, ना रोकने का कोई रास्ता दिखाई दे रहा था। सब डरे हुए थे, किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी इन परिस्थितियों का सामना करने की और यह सोचने की कि ऐसे में क्या किया जाए? ऐसे में बीड़ा उठाया अपने समाज को बचाने का उस बेरंग तितली ने। रात को जब सब सोए हुए थे, बेरंग तितली बिना आवाज़ के घर से निकल कर उड़ चली, सारी मुसीबतों की जड़ तक पहुँचने। दो दिन तक इधर-उधर घूमने व सभी तरह से देखरेख के पश्चात बेरंग तितली अपने समाज में पहुँची। उसके माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था, वो दोनों उसे देखते ही लिपट गये और दुलारने लगे। पिता के पूछने पर उसने, उन्हें तितली समाज में हो रही, मौतों के रहस्य को उजागर किया और समाज के मुखिया को बुलाकर उन मौतों के रहस्य को बताया और शीघ्र ही एक सभा बुलाने की प्रार्थना की, जिसमें छोटे बड़े सभी शामिल हों।


समाज के सभी सदस्यों की सभा आरम्भ हुई। समाज के मुखिया ने सबके सामने बेरंग तितली के हौसले और साहस की तारीफ करते हुए उसे सभा को सम्बोधित करने को कहा। उस साहसी बेरंग तितली ने बोलना शुरू किया- "समाज के सभी सदस्यों को मेरा प्रणाम, समाज में हो रही रहस्यमती मौतों को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बिना बताए उस रहस्य की खोज में निकल गयी, उसके लिए क्षमा चाहती हूँ। लेकिन दो दिन भटकने के बाद मुझे आखिरकार वो कारण पता चल ही गया कि एक-एक करके हमारे बन्धु-बान्धवों की मौतें क्यों हो रही है, और इसका कारण है मनुष्यों द्वारा अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए फूलों और वनस्पतियों पर अन्धाधुन्ध कीटनाशक का इस्तेमाल करना। अगर हमने अभी भी कोई कदम नहीं उठाया तो हमारा समाज धीरे-धीरे काल के गाल में समा जाएगा।"


सभा के बीच में से एक वृद्ध सदस्य ने पूछा :- "इसका उपाय क्या है?" उस बेरंग तितली ने कहा कि "हमें जल्द से जल्द ये इलाका छोड़ना होगा और दूसरी जगह दुनिया बसानी पड़ेगी।" सभा में कानाफूसी शुरू हो गयी। एक सदस्य ने पूछा, "लेकिन जाएँगे कहाँ?" बेरंग तितली बोली, "यहाँ से उत्तर दिशा में मैनें एक ऐसा स्थान देखा है, जहाँ मनुष्यों का कोई दखल नहीं है और वो स्थान तरह-तरह के फूलों और वनस्पतियों से भरा हुआ है, वह स्थान हमारे समाज के लिये अच्छा रहेगा।" सभा में फिर कानाफूसी शुरू हो गई।


समाज के मुखिया ने खड़े होकर सभा को शान्त किया और बोलना शुरू किया, "सबसे पहले मैं अपने समाज की साहसी "बेरंग तितली" के हौसले की दाद देता हूँ। जो काम हम में से कोई नहीं कर सका, वो इसने कर दिखाया। मुखिया होने के नाते समाज को बचाना मेरा काम था, लेकिन मैं असफल रहा। हमारे तितली समाज का ये नियम है कि जो भी समाज की भलाई के लिये कार्य करता है, वही समाज का मुखिया होने का अधिकारी है। आज मैं अपने मुखिया पद की सारी जिम्मेदारी समाज की इस बेटी 'बेरंग तितली' को देता हूँ और इसका हर निर्णय हमें मान्य होगा। हमें जल्दी ही इस स्थान को छोड़कर बताई गई नई जगह जाने में ही भलाई होगी। सबने तालियाँ बजाकर उस 'बेरंग तितली' का स्वागत किया और सब चल पड़े अपनी नयी मुखिया की अगुवाई में समाज को उन्नत बनाने।


- कुमार विवेक ‘मानस’

जसपुर, जिला-ऊधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड

शिक्षा :- एम० ए०, बी० एड०, एम० एड०, एम० सी० ए०

साहित्यिक रुचि :- दोहे, मुक्तक, अतुकांत, कविताएं, कहानी

विभिन्न साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित

No comments

Powered by Blogger.