हृदय परिवर्तन - by Tulsiram 'Rajasthani'


हृदय परिवर्तन

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अदालत का फैसला सुनकर मनोज वहीं गश खाकर गिरते-गिरते बचा। उसे पूरी उम्मीद थी कि जज साहब उसके जिगर के टुकड़े 'मिंकू' को जरूर उसी को सौंपने का आदेश देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। तीन वर्षीय मिंकू अब अपनी मम्मी के पास ही रहेगा। अदालत में मनोज को हार का सामना करना पड़ा। जीत पिंकी और उसकी मम्मी की हुई। उसके दोस्त राहुल व बहन शालिनी ने उसे सहारा देकर संभाला अन्यथा वह फर्श पर गिर ही पड़ता। चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो उसे कुछ होश आने लगा। वह अतीत की यादों में खो गया।


आज से लगभग 5 वर्ष पहले उसकी शादी पिंकी से हुई। दोनों कॉलेज में साथ पढ़ते थे। पहले दोस्ती हुई। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई कुछ पता ही नहीं चला। जैसे ही मनोज को एक कम्पनी में जॉब मिली। दोनों ने शादी रचा ली। ये उनकी लव मैरिज थी। पिंकी के परिवार वाले कुछ ज्यादा ही धनाढ्य थे। समाज में उनकी काफी अच्छी प्रतिष्ठा भी थी। पिंकी की मम्मी ने कभी नहीं चाहा कि उनकी बेटी एक साधारण परिवार के लड़के से शादी करे। लेकिन प्रेम के आगे पिंकी के घरवालों को झुकना पड़ा। आखिर जीत हमारे प्यार की हुई। जब भी पिंकी अपने पीहर जाती उसकी मम्मी उसे उलाहना जरूर देती। तूने बिरादरी में हमारी नाक कटवा दी... क्या देखा तूं ने उस मनोज में... तुझे एक से एक बढ़कर रिश्ते मिल जाते... अब भी कुछ नहीं हुआ है... सुबह का भुला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते... आदि-आदि। 


इस दौरान दोनों के जीवन में एक नए सदस्य के रूप में मिंकू ने प्रवेश किया। अब उनके प्यार का केंद्र केवल मिंकू हो गया। पिंकी के पीहर वालों की तरफ से बात-बात पर तानें मारने का सिलसिला पूर्व की तरह ही चलता रहा। कहावत है कि "उल्टी शिक्षा से अच्छा-भला घर फूट जाता हैं।" दौनों मियां-बीबी में बात-बे-बात किचकिच होने लगी। रोज-रोज की तू-तू मैं-मैं से घर का माहौल खराब रहने लगा। गुस्से में आकर एकदिन मनोज ने पिंकी पर हाथ उठा दिया। फिर क्या था, घर में बवाल मच गया। थोड़ी ही देर में पिंकी के घरवाले भी आ धमके। मनोज को बहुत भला-बुरा कहा, बात इतनी बढ़ गई कि तलाक की नौबत तक आ पहुँची।


पिंकी आज अपनी मम्मी के साथ आई। साथ में मिंकू और पुलिस भी आई। पापा-पापा चिल्लाता हुआ मिंकू दौड़कर मनोज की गोद में जा घुसा। मम्मी के हाथ में दहेज में दिए गए समान की पूरी लिस्ट थी। कोई सामान छूट न जाए इसलिए वे सब एक-एक कमरे को खंगाल रहे थे। मनोज सोफे पर बैठा मिंकू को दुलार करने लगा, वह आज जी-भर कर उस पर अपना प्यार लुटा देना चाहता था। पिंकी भी कमरे में आ गई और मिंकू को मनोज की गोद से लेने लगी। मनोज पिंकी के कदमों में बैठ गया और फफक-फफक कर रोने लगा... तुम चाहे मेरे घर का सारा समान ले जाओ पिंकी... पर मेरे मिंकू को तो मुझसे मत छीनों... वह पिंकी के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा। मनोज की ऐसी दशा देखकर पिंकी भी रोने लगी। तीनों एक-दूसरे से लिपट गए। आँखों से निर्मल धारा बहने लगी। आँसुओं की इस बाढ़ में अदालत का फैसला भी बह गया। तीनों एक-दूसरे को अपनी बाहों में कसकर जकड़े हुए थे। मम्मी और पुलिस वापस जा चुकी थी।


- तुलसीराम 'राजस्थानी'

नावां सिटी, जिला - नागौर (राजस्थान)

कवि, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

अध्यक्ष - सरस्वती काव्य-कला मंच

सह सम्पादक - कुमावत क्षत्रिय पत्रिका

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