डर - by Saroj Maheshwari
डर
बाल्यावस्था जीवन की वह अवस्था होती है, जिसकी स्मृतियाँ सुखद अहसास कराती हैं किंतु कभी कभी अमानवीय लोग मौके का फायदा उठाकर मासूम बच्चों के साथ घृणित कृत्य कर अमानवीयता की सभी सीमाएँ लाँघ जाते हैं। उसकी डरावनी पीड़ा बालक में इतना डर पैदा कर देती है कि मासूम बोलने की शक्ति ही खो को बैठता है.. वह मूक हो जाता है.... इसी विषय पर एक कहानी.....
रागिनी चाय की चुस्की ले ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी। रोज की तरह कमला बाई अपनी 12 साल की बेटी के साथ दरवाजे पर खड़ी थी। रागिनी के पति का तबादला इस शहर में कुछ दिन पहले ही हुआ था। कमला नाम की बाई को कुछ दिन पहले ही काम पर रखा था। कमला बाई को अपनी बेटी के साथ काम पर आते हुए लगभग पंद्रह दिन हो गए थे पर रागिनी ने बच्ची के मुख से एक शब्द नहीं सुना था। एक दिन कुर्सी पर बैठते हुए रागिनी ने बच्ची से पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है ?... चाय पिओगी?..." दूसरी ओर से कमला बाई ने उत्तर दिया - "मेम साहब इसका नाम राधा है। यह चाय नहीं पीती है। दिन बीतते गए। एक दिन रागिनी ने कमला बाई से पूछा - "कमला बाई जी ! क्या राधा जन्म से ही बोलने में असमर्थ है? कमला बाई ने कहा - "नहीं मेम साहब! ऐसी बात नही है। दो साल पहले मेरी बेटी बहुत बोलती थी, सारे दिन चिड़िया की तरह चहकती रहती थी। वह घर की रौनक थी। चहकना और चहकते रहना ही उसका काम था।" रागिनी ने पूछा - "फिर ऐसा क्या हुआ ?... राधा ने बोलना बंद कैसे कर दिया?"
"मेम साहब! सब कुछ ठीक चल रहा था। हम गरीब दिन-रात मजदूरी करके चैन से दो वक्त की रोटी खा रहे थे। दो साल पहले हमारे घर मेरी बुआ का लड़का रमन कुछ काम से रहने आया। वह शाम को काम पर जाता और सारे दिन घर पर रहता। हम दोनों पति-पत्नी सुबह काम पर चले जाते, हमारी बेटी और तीन साल का बेटा घर पर रहते। रमन के घर पर रहने से हम पति-पत्नी भी बेफिक्र होकर काम करते। सोचते बच्चों के पास रमन है। एक दिन अचानक बिना बताए रमन घर से चला गया, तभी से राधा भी एकदम चुप हो गई। कुछ बताती भी नहीं। हमने बहुत कोशिश कर ली कुछ बोलती ही नहीं... हाँ लाल रंग देख डर से काँपने लगती है।" रागिनी को कुछ दाल में काला लगा। उसने बच्ची के दर्द भरे डर को समझने का दृढ़ निश्चय किया। रागिनी राधा से बात करने की कोशिश करती परंतु राधा डर कर अपनी माँ का आँचल पकड़ लेती, हमेशा डरी डरी रहती, कुछ खाने पीने की पूछती तो सिर हिलाकर ही उत्तर देती।
एकदिन सब्जी काटते समय रागिनी के हाथ में चाकू लग गया, खून की धारा बहने लगी। पास खड़ी राधा जोर से चीख उठी मुँह से आवाज़ निकली... बचाओ! बचाओ! मुझे बहुत दर्द हो रहा है। रागिनी को समझ में देर न लगी सब कुछ समझ में आ गया। क्योंकि रागिनी एक नारी थी। उसने जब राधा से प्यार से पूछा... तो राधा ने रमन के द्वारा अपनी अस्मिता की लूटे जाने की पूरी कहानी मेम साहब को बता दी। उस नापाक दर्द के डर ने राधा की जिह्वा मूक कर दी थी।
रागिनी ने राधा को अपने पास बैठाकर प्यार से समझाया... राधा बेटा! तुम डरो नहीं। इसमें तुम्हारा कोई दोष नही है। एक बुरा सपना समझकर इस घटना को भूल जाओ । धीरे-धीरे राधा रागिनी से बात करने लगी। इस डर को राधा के मन से पूरी निकालने के लिए रागिनी ने उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल में कर दिया। कुशाग्रबुद्धि राधा हमेशा स्कूल में अच्छे नंबरों से पास होती थी। बड़ी होकर राधा ने समाज में अपनी पहचान बनाई। कानून की पढ़ाई करके वह एक कुशल वकील बन गई और हवसी जानवरों के हाथों से अपनी अस्मिता मिटाने वाली बेबस लाचार लड़कियों को अंधेरे गलियारों की कीचड़ से निकालकर उज्जवल मार्ग दिखाया। वह ऐसी लड़कियों का संबल बन गई। उसने डर के अंधेरों को उजालों में बदल दिया और बलात्कारियों को कठोर दण्ड दिलाने का दृढ़ निश्चय किया, जिससे समाज में भेड़ के रूप में बैठे भेड़िए की असलियत उजागर हो उन्हें ऐसा कठोर दण्ड मिले कि समाज में छुपे बैठे ऐसे जानवरों के मन में इस घिनौने कृत्य का इतना डर पैदा हो सके कि वे मूक हो जाए। सपने में भी ऐसे घृणित कृत्य को करने की न सोचें। त्रसित बेटियाँ नहीं बल्कि बलात्कारी "डर" के साए में जीएँ।
- सरोज माहेश्वरी
पुणे, महाराष्ट्र
शिक्षा - एम० ए०, बी० एड०
10 वर्षों तक हिंदी शिक्षण का अनुभव
10 साझा संग्रह एवं अनेकों समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित एवं अनेकों प्रशस्ति पत्र प्राप्त
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