ईमानदारी - by Chhaganlal Mutha


ईमानदारी

-

आज से 6 साल पहले की बात है। मैं 2015 में ऐसे ही घर में पुराने कागजात, डायरियाँ देख रहा था। तभी एक डायरी में कुछ लिखा हुआ देखा तो मुझे याद आया कि आज से 40 साल पहले 1975 में मेरे दोस्त की शादी थी, तभी उसने अपनी पत्नी को गिफ्ट देने के लिए मेरे पास एक सोने की अँगूठी बनाई थी। जो मैंने उसके एक दोस्त जो उसकी शादी में जा रहा था, उसके साथ मुम्बई से राजस्थान भेजी थी।


उसके बाद कुछ वर्षों तक उससे कभी मिलना नहीं हुआ और मैं भी उस बात को भूल गया था। उसके बाद 2015 में अचानक एक प्रसंग में हम दोनों का मिलना हुआ। हम दोनों ने बहुत ही खुशी से एक दूसरे के सुख-दुःख परिवार-दोस्तों की बातें की। ये मेरा दोस्त पहले से ही सुखी परिवार से था, और अब तो उसका बहुत बड़ा कारोबार था। उसके बाद ऐसे ही बात-बात में मैंने उसे कहा - "मैं एक बात बोलता हूँ, तुम बुरा मत मानना।" दोस्त ने कहा - "नहीं यार तु बोल क्या बात है।" तब मैंने उसे कहा - "तेरी शादी के वक्त मैंने एक 5 ग्राम की अँगूठी बनाकर दिया था, उसका हिसाब मेरा तुम्हारे पास से लेना बाकी है।"


मेरी ये बात सुनकर वो एकदम चौंक गया, गुमसुम हो गया और कुछ सोचने लगा। मै भी घबरा गया, सोचा ये क्या बोल दिया।और फिर मैंने कहा - "शायद मुझे कुछ गलतफहमी हो गई है। तुम टेंशन मत लो। छोड़ो कोई बात नहीं।" अभी मैं और कुछ बोलता, उसने मुझे बोलने ही नहीं दिया और बोला - "वाह दोस्त! आज तुने मेरे ऊपर का क़र्ज़ उतार दिया। 40 साल से जबसे मैंने व्यापार संभाला है, तब से आज तक मैंने किसी से कोई माल उधार या किसी का उपकार नहीं लिया, मगर आज मुझे मालूम पड़ा कि मेरा भी कोई शेठ है।"


वो मुझे गले लगाकर धन्यवाद देते हुए बोला, मुझे इतना तो याद है कि मैंने शादी के वक्त अँगूठी तो जरूर बनाईं थी, मगर किसके पास बनाई, मुझे कुछ याद नहीं। फिर बोला तुम अभी मेरे साथ मेरी ऑफिस में चलो और मेरा कर्ज़ उतारो। मैंने कहा - "अभी मुझे काम है। मैं तुम्हारे पास उसका हिसाब लेने के लिए बात नहीं किया है। तुम समाजसेवा, धर्म के नाम पर गरीबों को दान देकर बहुत पुण्य का काम करते हो और तुम्हारे जिंदगी में अंजाने में तुम्हारे ऊपर किसी का उपकार नहीं रह जाये, इसलिए मैंने हिम्मत करके यह बात की है।" उसके बाद हम दोनों जुदा हो गए।


उसके बाद 1-2 दिनों में लगातार उसके फोन आने लगे। बोलता था, भाई तुम कब आ रहे हो। 15 दिन बाद मैं उसके ऑफिस में गया। वो बहुत खुश हुआ और मेरा बहुत जोरदार स्वागत किया और अपने बेटे, मेनेजर और स्टाफ को बोला - "आज मेरा शेठ आया है। अपने बेटे को बोला इनके पैर छूकर आशीर्वाद लो और वो कवर जो मैंने इनको देने के लिए रखा है वो लाकर दो।" फिर उसने मेरे हाथ में एक कवर दिया और बोला - "ये घर पर जाकर खोलना। कुछ भी बोला या आनाकानी किया तो अपनी दोस्ती का सौगंध हैं।"


घर पर आकर मैंने अपने परिवार के सामने उस कवर को खोला तो उसमें उस दिन के सोने के भाव के हिसाब से 13 हजार 330 रूपये थे। धन्य है मेरे ऐसे दोस्त और उसकी दोस्ती और ईमानदारी को।


- छगनलाल मुथा

ऑस्ट्रेलिया

No comments

Powered by Blogger.