इंसान और जानवर - by Sunita Bhat Goja
इंसान और जानवर
मेरे घर के आंगन में दो पेड़ एरोकेरिया के हैं। उन्हें हमारे पिताजी ने गमलों में लगाया था, जो कि बागवानी के बहुत शौकीन हुआ करते थे। उनके स्वर्गवास के पश्चात उनकी निशानी के तौर पर मैंने माली से कहकर उन्हें अपने आंगन के बगीचे में दो कोनों पर लगवा लिया क्योंकि अब वे गमलों में समा नहीं पा रहे थे। रोज सुबह जब मैं नींद से उठती हूँ तो अपने आंगन के बगीचे में थोड़ी देर उनको निहारती रहती हूँ और पिताजी की यादों को ताजा कर लेती हूँ। उन पेड़ों पर पक्षियों का आना जाना लगा रहता है क्योंकि पेड़ अब बहुत ऊँचे हो चुके हैं।
एक दिन मुझे जरा फुर्सत-सी थी तो मैं बगीचे में सुबह कुर्सी बिछाकर बैठ गई और एकटक उन पेड़ों को निहारती रही, और भूली बिसरी पिताजी की बातों को याद करती रही। इतने में मैं यह देखती हूँ की उन पेड़ों में से एक पेड़ पर एक सुंदर सी नीले रंग की चिड़िया का जोड़ा फुदक रहा है। मैं देख कर बहुत खुश हुई और उन्हें देखती रही। फिर यूँ ही दिन भर काम में जुट गई। दूसरी सुबह जब मैं बगीचे में निकली तो देखा उस नीले रंग की चिड़िया का जोड़ा फिर से उस पेड़ पर फुदक रहा है, और उनकी चोंच में सूखी घास के तिनके हैं। मैं समझ गई कि यह जोड़ा यहाँ आशियाना बनाने की फिराक में है। बस फिर हर रोज तो मेरा नियम बन गया उन्हें घोंसला बनाते देखने का।
कुछ दिनों के बाद यूँ ही जब मैं ऑफिस से लौटी तो मेरी नजर सीधे बगीचे में खड़े पेड़ पर गई जहाँ चिड़िया का घोसला बनकर तैयार था। मैं खुशी से फूली नहीं समाई और मैंने अपने बच्चों और पतिदेव से उत्साह पूर्वक कहा - "देखो पिताजी के लगाए हुए एरोकेरिया पर तो चिड़िया ने घोंसला बनाया है।" बच्चे भी बहुत खुश थे। अब तो मेरे दोनों बच्चों ने उनके लिए दीवार पर दाना डालना भी शुरू कर दिया। हम लोग इसी इंतजार में थे कि कब चिड़िया इस घोसले में अंडे देगी और हम उसके छोटे से बच्चों को देखेंगे।
यूँ ही दिन बीतते गए और मैं अपनी दिनचर्या के बाद बगीचे में शाम को कुर्सी लगाकर एकटक घोंसले को और उस चिड़िया के जोड़े को देखती रहती। वहीं हमारे साथ वाले घर की छत पर एक बिल्ली ने भी दो बच्चे दिए थे और मैंने देखा वह बिल्ली भी मेरी तरह उस पेड़ पर बने घोंसले को एकटक देखती रहती है। वहीं पडोस के एक घर में एक लंबा-सा काले रंग की टोपी पहने एक आदमी रहने आया था। पता नहीं उसके रखरखाव से मुझे वह कुछ अटपटा-सा लगा, और एक दिन मैंने उसके हाथ में एक पिंजरा देखा जिसमें बहुत सारे अलग-अलग किस्म के पक्षी थे मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। शायद उन पक्षियों का पिंजरे में कैद होना कुछ ठीक नहीं यही मैंने सोचा। मैं फिर से अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई। शाम को जब मैं ऑफिस से आई तो मैंने बगीचे में देखा कि बच्चे शायद चिड़िया के लिए दाना डालना भूल गए हैं, मैंने जल्दी से अंदर आकर अपना बैग पलंग पर फेंका और हाथ धोने के बाद सीधे मैं पक्षियों के लिए दाना डालने गई। अचानक मेरी नजर साथ वालों की छत की तरफ गई तो मैं चौंक गई, मैंने देखा बिल्ली अपने पंजों में चिड़िया के अंडे दबाए दबे दबे पांव से अपने बच्चों की ओर जा रही थी और चिड़िया का जोड़ा जो बेचारा शायद दाने दीवार पर ना देख अपने आबदाने की तलाश में अपने घोंसले से निकल चुका था। मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था और बच्चों पर भी कि उन्होंने चिड़िया के दाने क्यों दीवार पर नहीं रखे। इसी उधेड़बुन में मैं बगीचे में खड़ी थी कि मैंने देखा वह काले रंग की टोपी वाला आदमी वही नीले रंग की चिड़िया का जोड़ा अपने पिंजरे में लेकर अपने घर की ओर जा रहा था। मेरे हाथ से दाने वाली प्लेट गिर गई और आँख से टप-टप आँसू बहने लगे। इतने में मेरे पतिदेव आए और उन्होंने मुझसे मेरे रोने का कारण पूछा तो मैं उनसे बस बरसती आँखों से यही पूछती रही कि इंसान और जानवर में फर्क क्या है? इंसान तो जानवर से भी खतरनाक है। जानवर तो अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए यह सब करता है, तो इंसान क्या अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए। बस मैं यही सोचती रह गई।
- सुनीता भट्ट गोजा
पता :- जम्मू , जम्मू और कश्मीर
कवयित्री, लेखिका, शिक्षिका, शेफ
कार्यक्षेत्र :- भविष्य निधि विभाग
शिक्षा स्नातक, विज्ञान स्नातक, विधि स्नातक
रुचि :- कश्मीरी भजन, हिंदी कविताएँ, उर्दू नज़म व गज़ल और लघुकथाएँ लिखने में
No comments