पाँच सौ रुपये - by Laxmi Devi "Chetna"
पाँच सौ रुपये
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बड़ी तेजी से एक लड़का अपने घर की तरफ भागता है, जिसकी उम्र दस-बारह साल रही होगी, घर में घुसते ही वह अपनी माँ को एक किताब दिखाता है, जो चटाई पर लेटी हुई थी। किताब देखकर उसकी माँ बोली - "हम गरीब लोग हैं, रेलवे लाइन के पास झोपड़ी डालकर रहते हैं, खाना तो बड़ी मुश्किल से मिल पाता है और तू किताब लेकर आया है।" तभी बच्चा बीच में ही माँ को रोकते हुए किताब खोलता है और पन्नों के बीच रखा पाँच सौ रुपये का नोट दिखाता है। माँ चुपचाप उस नोट को एक टक देखने लगती है, मानो पहली बार उसने इतने करीब से इतने रुपये देखें हैं। अचानक माँ को ख्याल आता है और वह गंभीर स्वर मे पुछतीहै - "तूझे ये पैसे कहाँ से मिले? कहीं तुमने चोरी तो नहीं की ?"
तभी वह बच्चा कहता है - "नहीं माँ! आज कबाड़ उठाते समय मुझे वहाँ से मिली, मैं इसे कबाड़ी वाले को बेचने ही जा रहा था कि तभी पन्नों के बीच ये पैसे दिखे, मैं सीधा तुम्हारे पास लेकर आया हूँ माँ।"
तभी उसका शराबी पिता नशे में धुत होकर अंदर आता है और खाने के लिए कुछ माँगता है, बच्चे की माँ झट से बच्चे के हाथ से किताब लेकर कपड़ों के गठरी में रख देती है, बच्चा कुछ बोल ही नहीं पाता।
सुबह जब बच्चे की आँख खुलती है तो देखता है उसका शराबी पिता उसकी माँ से पैसे के लिए लड़ रहा है, उसका पिता कहता है की मुझे पता है घर में पैसे हैं, मुझे दे दे वरना वह उससे जबरदस्ती छिन लेगा और अपनी बीवी के साथ मारपीट करने लगता है, तभी बच्चा मौका पाकर गठरी में से किताब निकाल लेता है और झोपड़ी के पिछे से निकल जाता है। थोड़ी दूर पहुँचने पर बच्चा किताब खोलकर देखता है, उसमें पाँच सौ रुपये थे, अब बच्चा पैसे को अपने पैैंट के जेब में बड़ी सावधानी से रख कर एक दुकानदार के पास पहुँचता है। बच्चा दुकानदार को किताब दिखा के पुछता है, इस किताब में किसी का नाम लिखा है क्या?
दुकानदार अभी देख ही रहा होता है की बच्चा फिर पुछ बैठता है, क्या लिखा है? दुकानदार बच्चे से कहता है, स्कूल का नाम लिखा है सेंट जेवियर्स स्कूल, नाम भी लिखा है रमन कुमार कश्यप और किताब बच्चे को देकर जाने के लिए कहता है।
अब वह बच्चा सड़क के किनारे आ जाता है, तभी वह देखता है की पास में एक ऑटोवाला खड़ा है, वह दौड़ के ऑटोवाला के पास जाता है और पूछता है, इस किताब में जो स्कूल का नाम लिखा है वह कहाँ है?
ऑटोवाला ऊँगली दिखाते हुए कहता है, उस तरफ है, पर बीस रूपये किराया लगेगा, चलो मैं पहुँचा देता हूँ।
बच्चा जाने के लिए मना करता है और खुद ऑटोवाले के बताए हुए रास्ते पर चलने लगता है, अगर रास्ता किसी मोड़ पर जा रूकता तो फिर किसी से पुछ लेता और आगे बढ़ जाता।
कुछ घंटों बाद वह बच्चा स्कूल के गेट के बाहर पहुँचा। स्कूल बहुत बड़ा था, स्कूल का गेट भी बहुत बड़ा था। स्कूल के बगीचे में बहुत सुन्दर-सुन्दर कई तरह के फूल खिले थे। पार्किंग एरिया में बाइक और कार खड़ी थी। बच्चे को वह स्कूल महल-सा लगा, मन में सोचने लगा, यहाँ पढ़ने वाले बच्चे कितने खुशनसीब होते होंगे, काश मैं भी पढ़ पाता। तभी उसका ध्यान भंग हुआ, जब स्कूल के चौकीदार ने पूछा - "यहाँ क्या काम है ?"
बच्चे ने चौकीदार को किताब दिखाते हुए कहा - "यह किताब मुझे रास्ते में गिरी हुई मिली, जिसकी यह किताब है मैं उसे देना चाहता हूँ।" चौकीदार ने कहा - "मुझे दे दो, मैं दे दूंगा।" पर बच्चा खुद मिल कर देना चाहता था, शायद अविश्वास कि भावना हो।
चौकिदार ने बच्चे को गौर से देखा, तन पर मैले कपड़े, बाल रुखे और बिखरे, पावें में अलग-अलग तरह की चप्पलें थी और पसीने से तर वह बच्चा कुछ थका हुआ सा जान पड़ता था ।
चौकिदार को बच्चे की हालत पर तरस आ गई, उसे पानी पिलाया और बैठने के लिए कह कर प्रिंसिपल के कमरे में चला गया, थोड़ी देर बाद चौकीदार बच्चे को लेकर प्रिंसिपल के कमरे में जाता है, वहाँ एक और शिक्षक मौजूद थे। प्रिंसिपल के पूछने पर वह बच्चा किताब से लेकर पैसे तक की सारी बात बता देता है।
प्रिंसिपल रमन कुमार कश्यप को बुलाने के लिए कहते है, कक्षा में जाने के बाद पता चलता है कि यह जिस रमन कुमार की किताब है वह पिछले साल ही उतीर्ण होकर स्कूल छोड़ चुका है। प्रिंसिपल ने रमन कुमार के पिता जी के नम्बर पर फोन किया और उनको भी सारी बात बता दी साथ ही अभी स्कूल में आने के लिए कहा। पहले तो रमन कुमार के पिता जी इस बात को जानने से इनकार किए फिर समय की कमी की वजह से नहीं आ सकते ये भी कहा। पर प्रिंसिपल के आग्रह करने पर, श्रीमान कश्यप अपने बेटे के साथ स्कूल आ जाते हैं।
वह बालक रमन कुमार के हाथों में किताब और वह पाँच सौ रुपये दे देता है जिसे वह इतनी हिफाजत से यहाँ तक लेकर आया था। रमन कुमार किताब देखते ही समझ गया की यह किताब उसी का है, जो सफाई के दौरान हटा दी गई होगी । वहाँ खडे़ जितने भी लोग थे सब उस छोटे से बालक की ओर देखने लगे, सब उसे शाबाशी देने लगे। रमन कुमार वह पाँच सौ रुपये उस बच्चे को वापस देते हुए कहता है की ये पैसे तुम्हें मिले, यह तुम्हारा है, इसे तुम रख लो । बच्चा मना करता है पर सब उसे मना लेते है ये कहकर की ये उसके ईमानदारी का इनाम है।
फिर प्रिंसिपल ने पूछा - "इस पैसे के बारे में तो कोई भी नही जानता था, तुम इसे रख भी लेते तो किसे क्या पता चलता ?"
तब बच्चे ने खूबसूरत सा जवाब दिया - "हमें गरीब भगवान ने बनाया है साहब, पर चोर या बेईमान हम खुद बनते हैं, ये मेरी माँ ने बताया है।"
✍️ लक्ष्मी देवी "चेतना"
वर्तमान पता - तिनसुकिया, असम
मूल निवासी - बिहार
रुचि - कविता और कहानी लिखना
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