विधवा - by Girish Chandra Ojha "Indra"
विधवा
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मकरही के महाराजा ने अपनी बेटी अमिता से कहा "बेटी! आज शिकार खेलने की प्रबल इच्छा है। तू भी हमारे साथ चलेगी। सेनापति और मंत्री आते ही होंगे। जा, तैयार होकर आजा।''
अमिता तैयार होकर आ गई। घोड़ा गाड़ी भी तैयार होकर आई और राजा के साथ सभी लोग उसमे सवार हो गए। घोड़ा गाड़ी को राज परिचालक ने चलाना शुरू कर दिया। गाड़ी मकरही के राजप्रसाद को पार कर सड़क पर चलने लगी थी।
अमिता ने अपने मन की बात कही "पिताजी मकरही वास्तव में एक सुन्दर शहर है। यहाँ ये कोठियाँ बहुत सुंदर बनी हैं।''
"बेटी! प्रतिवर्ष राजमहल के शाही शिल्पकार ध्रुवेंद्र मीणा शहर का सुंदरीकरण करवाते रहते हैं।'' महाराजा ने अपनी बात कही।
घोड़ागाड़ी आगे बढ़ती ही जा रही थी कि सड़क के किनारे पर एक तरफ एक महिला को देखकर गाड़ी का चालक चिल्ला उठा," महाराज! गजब हो गया। फेंकू माली की विधवा दिख पड़ी। अब क्या होगा! मेरी मानो तो शिकार का कार्यक्रम रद्द कर वापसी की जाए।''
मंत्री ने भी समझाया," महाराज! सत्य है।"
अमिता ने बात काटी, "पिता जी! जीवन मरण तो विधाता का लेख होता है। किसी भी महिला से उसका पति छिन जाना भगवान की ओर से उसको मिलने वाली सजा है। क्या यह उचित है कि समाज में हम विधवा को देखना नही चाहें।''
महाराज सूखी हँसी हंसते हुए बोले 'अभी बच्ची है, अबोध!'' फिर वे क्रोध भरी आवाज में चिल्ला उठे "जिसके कारण आज शिकार स्थगित हो रहा है। उसे हम सजा देंगे। इस विधवा को गिरफ्तार कर लिया जाए। यह हमारा आदेश है।''
अमिता की कुछ न चली। मंजरी को गिरफ्तार कर घोड़ा गाड़ी में बैठाकर राजमहल की ओर चालक ने मोड़ दिया।
मकरही की प्रजा में मंजरी की गिरफ्तारी चर्चा का विषय बन गई। "अब इस राज्य में कोई भी विधवा अपने घर से बाहर निकल नहीं पाएगी। अब न जाने मंजरी का क्या होगा ?'' कोई यह भी कह रहा था, "भैया! समरथ के नहिं दोष गोसाई! राजा जिसको चाहे फांसी पर लटका दे।''
"बेचारी! मंजरी को अब फांसी होगी !''
"हमने तो यह भी सुना है कि राजकुमारी मंजरी को फांसी देने के पक्ष में नहीं है।''
मकरही की राजकुमारी उदास अपने कक्ष में बैठी एक नव युवक की तस्वीर को देखकर आंसू बहा रही थी। कभी-कभी उसकी हलक से हिचकी सी निकल जा रही थी। वास्तव में बात यह थी कि रामपुर के राजकुमार से एक वर्ष पूर्व ही उसका विवाह हुआ था जो कल ही एक समुद्री दुर्घटना में मारा गया था।
राजकुमार शिवम रामपुर के राजा के आदेश का उल्लंघन कर उस सैनिक टुकड़ी के साथ समुद्री डकैतों का सामना करते हुए मारा गया था। इस घटना की सूचना अभी चार घण्टे पूर्व ही मकरही के राजदरबार मे प्राप्त हुई थी और पूरा राजदरबार शोक मे डूब गया था। मंजरी की होने वाली पेशी कल पर टाल दी गई थी।
अंत: पुर में महारानी विजया अपनी प्यारी बेटी को समझा रही थी "बेटी! तुम राजकुमारी हो। यह घाव भर जायेगा और जल्दी ही हम अपनी बेटी का शान से दूसरा विवाह करेंगे।''
"मां ! मैं तो विधवा हो गई और विधवा को दूसरी शादी का अधिकार नहीं होता।''
"बेटी ! यह नियम केवल प्रजा के लिए ही है। तुम तो राजपुत्री हो !''
आज राज दरबार में मंजरी की पेशी थी। राजा के लिखे फैसले को सुनने के लिए प्रजा की भीड़ लगी हुई थी। मंजरी वंदिनी के वेश में कटघरे में खड़ी थी।
मंत्री ने अपनी बात महाराज के सामने रखी "विधवा मंजरी अपना भाग्य आजमाने के लिए महाराज के सामने खड़ी है। इसी को देखने के उपरांत एक दिन आपकी शिकार यात्रा स्थगित हो गई थी।''
"स्मरण है। इस विधवा ने अपनी मनहूस सूरत दिखा कर हमारे ऊपर तो वज्र ही गिरा दिया। राजकुमारी भी इसी की तरह विधावचो गई।'' गंभीर स्वर निकला महाराज का।
"महाराज ! मैं निर्दोष हूं।'' स्पष्ट स्वर में मंजरी बोली।
अचानक दरबार में दासी ने प्रवेश किया और राजकुमारी के आने की सूचना दी। महाराज के आदेश से अमिता ने दरबार में प्रवेश किया और उसे उचित आसन दिया गया। कुछ देर बाद न जाने क्या मन में आया कि राजकुमारी दर्शक - दीर्घा में जा बैठी।
"आखिरी बार पूछा जाता है क्या तू निर्दोष है ?'' राजा का गंभीर स्वर निकला। मंजरी चीख उठी, "मुझे कुछ भी नही कहना। मुझे फांसी मिले।'' पूरा राज दरबार अचंभे में हो गया।सभी सोचने लगे थे कि अब क्या फैसला महाराज करते हैं?मंजरी फिर बोली, "हमने मकरही नरेश को देख लिया। मै दण्ड की अधिकारिणी हूँ।''
शाही अदालत स्तब्ध थी। राजकुमारी से न रहा गया। वह जाकर मंजरी के पास कटघरे में खड़ी हो गई और बोली, "दण्ड की अधिकारिणी तो मैं भी हूं। मुझे भी दण्ड मिले!'' महाराज एक-टक कभी मंजरी तो कभी अमिता की ओर देखने लगे।
- गिरीश चन्द्र ओझा "इन्द्र"
अजुवाॅ, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
कई कृतियाँ प्रकाशित, विभन्न साझा संग्रह में रचनाएँ प्रकाशित व सम्मान प्राप्त
संस्थापक : अन्तर्ज्योति सेवा संस्थान
अनुभव : अन्तर्ज्योति त्रयमासिक पत्रिका का संपादन
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