अनोखा रिश्ता - by Arun Gijre


अनोखा रिश्ता

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"ब्लड चढ़ाना पड़ेगा, व्यवस्था कर" - डॉक्टर ने कहा। मैंने कहा - "डॉक्टर साहब! ब्लड की व्यवस्था आप अपने अस्पताल से कर दें, जो खर्चा होगा मैं दे दूँगा।"


मेरी तमाम मिन्नतों और कोशिशों के बाद भी अस्पताल से खून की व्यवस्था नहीं हुई। मेरी पत्नी प्रतिभा के स्वास्थ्य के लिए मैं बहुत चिंतित था। मुझे चिंता में देखकर हमारी काम वाली बाई भानुमती बोली - "भैया! क्या परेशानी है? बहुत चिंता मे दिख रहे हो।" मैने कहा - "प्रतिभा का आपरेशन तो हो गया है, डॉक्टर कह रहे हैं कि खून देना पड़ेगा। मेरा खून मेल नहीं हो रहा है, समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ।"


भानुमती ने कहा - "एक बात कहूँ, मेरा खून टेस्ट करके देख लो" फिर डॉक्टर ने टेस्ट करके भानुमती का खून लेकर प्रतिभा को चढ़ा दिया।


प्रतिभा अब पूरी तरह स्वस्थ होकर घर में बेड रेस्ट पर थी और घर का पूरा काम भानुमती ने बहुत ही अच्छी तरह से सम्हाल लिया था।

 

भानुमती ने कहा - "भैया! खाना खा लेना, मैने खाना बनाकर ढक कर रख दिया है। अब मैं जा रही हूँ।" मैंने कहा - "भानुमती! रुको, तुम ऐसा करो, यहीं से खाना खाकर जाओ और अपने बेटे सुरेश के लिए भी साथ में खाना लेकर जाना।" "नही भैया! मैं सुबह खाना बनाकर आई हूँ, घर पर जाकर गरम करके मैं और सुरेश खा लेंगे।" - भानुमती ने कहा।


अच्छा ठीक है, तुम ऐसा करो, कल दिवाली है। तुम और सुरेश दोनो यहीं पर आ जाना, और यहीं खाना खा लेना।" - मैंने कहा।


अगले दिन, यानी दिवाली के दिन प्रतिभा ने कहा - "आज खाना मैं बनाऊँगी।" मैने कहा - "अभी रहने दो, भानुमती बना लेगी। तुम अभी थोड़े दिन और आराम कर लो। पूरी तरह ठीक हो जाओ, फिर बनाना रोज खाना।" लेकिन प्रतिभा नहीं मानी और उसने पूरा खाना स्वयं बनाया।


भानुमती, उसके आठ साल के लड़के सुरेश और मैंने प्रतिभा के हाथ का बना भोजन किया। भानुमती ने कहा - "प्रतिभा भाभी! आपने खाना बहुत ही बढ़िया बनाया, लेकिन मैं बना देती और अभी आप थोड़ा और बेडरेस्ट कर लेतीं।"


"नहीं भानुमती! अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ। वैसे भी तुमने अपना खून देकर मेरी जान बचाई है, ये एहसान मैं कभी नहीं भूल सकती।" - प्रतिभा ने कहा। भानुमती ने कहा - "नहीं भाभी! मैने कोई एहसान नहीं किया" फिर भानुमती ने मेरी तरफ देखकर कहा - "भैया ने हमारे लिए इतना कुछ किया है। मेरे लड़के की स्कूल की फीस, कपड़े, और जरुरत पड़ने पर महीने के पैसे के अलावा भी खर्च किया है। एक बार खून देने से मैं ये कर्जा कभी नहीं उतार सकती..." यह कहते हुए वह बहुत भावुक हो गई। वह हमारे यहाँ पिछले पाँच साल से काम कर रही है। प्रतिभा इस बीच बहुत बीमार रही लेकिन भानुमती के होने से घर के काम में कभी कोई बाधा नही आई। पिछले साल भानुमती का पति एक एक्सीडेंट मे खत्म हो गया।


"अच्छा भैया, मैंने पूरा काम कर दिया है। मै अब जाऊँ" - भानुमती ने कहा। "नहीं भानुमती" - प्रतिभा बोली। "तुम्हें आज यहीं रुकना पड़ेगा, और वो भी सुरेश के साथ।"


"नहीं भाभी" प्रतिभा की तरफ देखकर भानुमती कुछ कहना चाहती थी लेकिन प्रतिभा ने भानुमती का हाथ पकड़ कर कहा - "मुझे भाभी और इन्हें भैया कहती हो न, तो अब भाई दूज भी यहीं मनाना। आज से तुम और सुरेश हमारे साथ ही रहना, इसे अपना घर समझना।"


इस बात को बीते पूरे तीस साल हो गए हैं। भानुमती का बेटा सुरेश अब मेरा अपना बेटा है - डॉक्टर सुरेश त्रिपाठी एम.एस., शहर का जाना माना सर्जन। भानुमती तो अब इस दुनिया मे नहीं रही। सुरेश को मैंने कानूनन गोद ले लिया है, भानुमती बहन के सामने, उसकी मृत्यु से पूर्व ही। आपरेशन के बाद प्रतिभा कभी माँ नही बन सकती थी, ये डॉक्टर ने बता दिया था। भानुमती बहन ने अपना खून देकर प्रतिभा की केवल जान ही नहीं बचाई बल्कि अपने जिगर का टुकड़ा देकर माँ का सम्मान भी दिया। मैं और प्रतिभा, भानुमती बहन के हमेशा ऋणी रहेंगे।


- अरुण गिजरे

पता :- ग्वालियर, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश कृषि विभाग से सेवा निवृत्त

रूची :- कविता, कहानी, लघुकथा, कृषि से संबंधित लेख इत्यादि लेखन

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविता, बाल कविता, लघुकथा, लेख आदि प्रकाशित

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