धरती हमारी माता है - by Avinash Beohar


धरती हमारी माता है

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धरती हमारी माता है

और आकाश पिता।


पेड़ हुए हैं 

मित्र हमारे,

हवा सहेली है।

खाने को

सूखी रोटी औ'

गुड़ की भेली है।।


पतझर में झरते पत्तों की

बनती रही चिता।


वनिता है जो

व्यंजन का बेसन

राँध रही है।

प्रकृति हमेशा से

मोहपाश में

बाँध रही है।।


सागर से मिलने को आतुर

दिखती है सरिता।


रक्तपात-हिंसा

जीवन में

अक्सर दिखता है।

और भोलापन

दूर खड़ा

कहानी लिखता है।।


पत्थर फोड़ के झरने जैसी

झर रही कविता।


- अविनाश ब्यौहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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