हवाएँ - by Kamal chandra


हवाएँ

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हवाओं ने छेड़ के ज़ुल्फ़ों को,

मेरे चेहरे का नूर बढ़ा दिया है।

हवाओं ने शबनमी बूंदों को,

आसमाँ पर बिठा दिया है।।


छेड़ी जो तरंन्नुम हवाओं ने,

जीवन राग बजने लगा है।

महकी साँसे, जागी धड़कन,

प्यार का गीत सजने लगा है।।


हवाओं के कांधे पर सवार हो,

आईं खुशियाँ हर द्वार-द्वार।

मधुर महक-सी जाग उठी,

प्यारे प्रीतम ऋतुराज के द्वार।।


सावनी हवाओं से महकी क्यारी,

मोगरा, रातरानी से गमकी फूलवारी।

विरही प्रीतम को दे आना पाती,

आन संदेशा मुझसे कहना रतनारी।।


हवाएँ हों प्रलयं कारी,

तो बहुत कहर ढातीं हैं।

उड़ा ले जातीं हैं तिनके-सा,

सब तबाह कर जातीं हैं।।


बे-खौफ, और बे-लगामी,

बे-कायदा सी लाती हैं सुनामी।

उजड़ते आशियाने बे-हिसाब,

ज़िंदगियाँ कर जाती बे-नूरानी।।


- कमल चंद्रा

भोपाल, मध्य प्रदेश

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