मैं कवि हूँ - by Kumar Avishek Anand


मैं कवि हूँ


मैं कवि हूँ,

कविता लिखता हूँ।

अर्थों के समंदर में,

गोता यूँ लगाता हूँ।

भावों की धार बहाता हूँ,

सपनों की फसल उगाता हूँ।

अनुभूति के रस में डूबकर,

भाव-विभोर हो जाता हूँ।

मैं कवि हूँ,

कविता लिखता हूँ।

सृष्टि के कितने पहलू को,

भवसागर पार लगाता हूँ।

उपमा और अलंकारों से,

नई उम्मीद जगाता हूँ।

 प्रेमी को देखो प्रियतम से,

श्रृंगारों में यूँ मिलाता हूँ।

 कभी गाँव या कभी शहर,

कागज में कलम घुमाता हूँ।

मैं कवि हूँ,

कविता लिखता हूँ।

भावों की धार बहाता हूँ।

काँटो की नोकों को सहकर,

जब अपनी कलम उठाता हूँ।

दिल का दर्द सीने में लिए,

एक मरहम लिख जाता हूँ।

 मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे से हटकर,

 इंसानियत का धर्म बताता हूँ।

मैं कवि हूँ,

कविता लिखता हूँ।

भाव की धार बहाता हूँ।

 अरुणोदय के गहने पहने,

होठों पर मुस्कान लिए,

यौवन का गजब श्रृंगार किए।

 पर्वत के कोने से देखो,

जब मार्तण्ड निकलता है।

प्रकृति के इस अद्भुत पल का,

अनुपम सौंदर्य बताता हूँ।

 मैं कवि हूँ,

कविता लिखता हूँ।

 भावों की धार बहाता हूँ,

स्वपनों की फसल उगाता हूँ।

अनुभूति के रस में डूबकर,

 भाव-विभोर हो जाता हूँ।


- कुमार अभिषेक आनंद

साहिबगंज, झारखंड

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