मेरा वज़ूद - by Bezaar ahmadabadi


मेरा वज़ूद

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मेरा वज़ूद है क्या, बता दिया मुझको।

वर्षों की दोस्ती थी, भुला दिया मुझको।


में कोई अश्क़ का, कतरा तो नहीं था,

अपनी नज़र से क्यों, गिरा दिया मुझको।


हर नज़र देखती है, खरीददार की तरह,

जैसे कि दुकानों में, सज़ा दिया मुझको।


उम्र भर देखकर जिसको, मुस्कुराते ‌रहे,

करके बेगाना मुझे, रुला दिया मुझको।


हमने दी जिसको, उम्र भर खुशियाँ,

उसने बदले में क्या, सिला दिया मुझको।


बहुत उम्मीद थी मुझको, ना उम्मीद न था,

हर उम्मीद पे उसने, दगा दिया ‌मुझको।


गुलशन से गुलों की, उम्मीद बहुत थी,

जब दिया ख़ार दिया, क्या दिया मुझको।


करने वालों ने किया था दरिया के हवाले,

वो तो रब था, कि आसरा दिया मुझको।


बड़ी उम्मीद से, जानिबे मंजिल को चला,

'बेजार, कहाँ से कहाँ पर ला दिया मुझको।


- बेज़ार अहमदाबादी

अहमदाबाद, गुजरात

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